Wednesday 11 August 2021

आखिर क्यों !

आखिर क्यों 

पहले कभी एहसास न हुआ 

न महसूस हुई कभी कोई कमी 

आपके जाने से, न होने से 

पर हर लम्हा हर वक्त 

कैसे भूलूँ  वह मुस्कुराता चेहरा 

वह खट्टी मीठी बातें 

वह प्यार  वह दुलार 

और न जाने क्या क्या 

बस अब यादें ही तो हैं 

मेरी हिम्मत मेरा होंसला 


किस तरह कहूँ 

क्या क्या नहीं सिखाया आपने 

गमो की भीड़ में सर उठाकर 

मुस्कुराकर जीना सिखाया आपने 

पर आज नहीं समझा पा  रही 

मैं अपने इस मन को 

नहीं रोक पा रही 

अपने आसूंओ को 

कैसे समझाऊँ इन्हे 

की अब कोइ उम्मीद नहीं  

आपके आने की 

मेरा होंसला बढ़ा ने की

किससे  कहूँ कैसे कहूँ 

आखिर क्यों!

6 comments:

  1. Kaise kahun kya likha hai! Dil bhar aaya aur aankhein nam ho gayi! Ise parhkar mujhe bhi koi yaad aa gaya... Aakhir kyon?

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  2. अदभुत । बहुत गहन और मार्मिक कविता ।

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  3. Very nicely articulated words to a wonderful poetry. Great.

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  4. बहुत खूब. मां है ना| कोई उसकी जगह नहीं ले सकता |

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  5. बहुत बढिया दिल को छू गयी touching poem

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