Thursday 18 February 2021

अनकहे अल्फ़ाज़!

कहना चाहती थी मगर कह नहीं पाई मैं उस रात

काश कर पाती अपने ख्यालों और उलझनों को शब्दों में बयां 

कई सवालों ने घेरा था मुझे 

और फिर वह चहचहाते हुए परिंदे,

लहलहाते फूल 

खामोश चेहरा खामोश आँखें 

उस रात का था एक अनोखा ही रूप 


पेड़ की बाहों मे सिमटी-सिमटी हवा 

मेरी तम्मनाओ मेरी आरज़ू को सहलाती हुई 

कहती रही तुम क्यों नहीं करती बयां 

क्यों अल्फाज़ों में छुपाये रखे है 

अपने एहसास 

अपने जज़्बात 

अपने ख्वाब

उलझी हुई नींद में, अक्सर तन्हाई की रातों में

क्यों ढूंढती हो तुम अपने उन सवालों के जवाब


काश तुम कर पाती अपनी हर कोशिश को बयां

अब तो होंठ अगर हंस भी पड़े आँखें छलक जाती हैं

2 comments:

  1. आपने अपने दिल के जज़्बातों को लब्ज़ो में बयाँ किया वह क़ाबिले तारीफ़ हैं | 

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  2. क्या बात| अनकही बातें सिर्फ जज़्बात ही बयां कर सकते हैं |

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